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Sunday, February 14, 2016

INSIDE STORY: भाजपा में आने से पहले विशेश्‍वर ओझा के सिर था 25 हजार का ईनाम

अमरेन्दर कुमार

बिहार में जिस भाजपा नेता विशेश्‍वर ओझा की गोली मारकर हत्‍या हुई थी उनका पुराना आपराधिक रिकॉर्ड रहा है. भाजपा में शामिल होने से पहले विशेश्‍वर ओझा के क्राइम की दुनिया में पैठ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके सिर पर 25 हजार रुपए का ईनाम था. शुक्रवार को अपराधियों ने शाहपुर थाना के सोनवर्षा में विशेश्‍वर ओझा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी.
विशेश्‍वर के नाम से कांपता था दियारा ।
विशेश्वर ओझा की पहचान कभी दियारा के आतंक के रूप में भी होती रही है. पिछले के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्‍हें शाहपुर से प्रत्‍याशी बनाया था, हालांकि वे चुनाव हार गए थे.
जमीन कब्‍जाने के थे कई आरोप
भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड से सटे ओझवलिया गांव के ब्राह्मण परिवार में जन्मे विशेश्वर ओझा की पहचान उनके इलाके में कई रूपों में होती थी. कोई उन्‍हें बाहुबली तो कोई बाबा और कोई नेता जी कहता था. दो भाइयों में सबसे बड़े और इंटर की पढ़ाई करने वाले विशेश्वर ने व्यवसाय में भी हाथ आजमाया, लेकिन उन्हें असली पहचान अपराध की दुनिया से ही मिली.
विशेश्वर को अपने इलाके में जमीन पर कब्जा करने के लिए भी जाना जाता था. विशेश्वर की सोनवर्षा निवासी व दियर (नदी के आसपास का क्षेत्र) इलाके के आतंक के रूप में पहचाने जाने वाले शिवाजीत मिश्र से दोस्ती और दुश्मनी दोनों चर्चा में रहती थी. दोनों ने मिलकर पहले जमीन पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया. हालांकि, हाल के दिनों में दोनों के बीच दुश्मनी थी.
लंबा था सियासी वजूद
विशेश्वर ओझा अपराध के जगत में नाम कमाने के बाद पिछले 15 साल से राजनीति में अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय थे. सबसे पहले 2000 में उन्‍होंने पंचायत चुनावों के रास्ते अपने परिवार की राजनीति में एंट्री कराई. इसके बाद से पीछे मुड़ कर नहीं देखा. विश्वजीत ने 2005 के चुनावों में अपनी पत्नी शोभा देवी को शाहपुर सीट से जदयू का टिकट दिलवाया, लेकिन वो चुनाव हार गईं.
2005 के ही दूसरे विधानसभा के चुनाव में विशेश्वर ने अपने दम पर छोटे भाई की पत्नी मुन्नी देवी को न केवल टिकट दिलवाया, बल्कि चुनावों में जीत दिलाकर इलाके के लोगों को अपनी सियासी ताकत का भी अहसास कराया. मु्न्नी देवी 2010 के चुनावों में भी शाहपुर की सीट जीतकर विशेश्वर के प्रभाव को जमाने में कामयाब रहीं.
25 हजार के रहे हैं इनामी, दिल्ली से हुई थी गिरफ्तारी
विशेश्वर ओझा ने यूं तो 1990 में ही बंदूक उठा लिया था. उनपर हत्या, पुलिस बल पर हमला व गोलीबारी समेत कुल 15 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे.
विशेश्वर पर बिहार से बाहर झारखंड के धनबाद में भी केस दर्ज हुआ था. विशेश्वर ओझा के अपराधिक इतिहास को देखते हुए राज्य सरकार ने वर्ष 2002 में उनकी गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था.
विशेश्वर ओझा को वर्ष 2006 में दिल्ली के सरोजनी नगर से स्पेशल ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार किया था.
2013 के चुनाव में मिली थी हार

विशेश्वर ओझा ने विधानसभा का टिकट पाने से पहले साल 2013 में आरा-बक्सर स्थानीय निकाय का विधान परिषद का चुनाव भी लड़ा था. इस चुनाव में उनका मुकाबला सुनील पांडेय के भाई और बाहुबली हुलास पांडे से था, जिसमें विशेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था.
इसके बाद से ही माना जा रहा था कि विशेश्वर 2015 के चुनावों में भाजपा के टिकट पर शाहपुर से चुनावी मैदान में उतरे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने इनके इलाके में प्रचार किया, लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाए.
मोदी को माना जाता है सियासी गॉड फादर

बिहार के भाजपा इकाई में विशेश्वर ओझा का खासा प्रभाव है. राजनीति में सुशील कुमार मोदी को उनका गॉड फादर माना जाता था. विधानसभा का चुनाव लड़ने से पहले ओझा पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों से भी जुड़े थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आरा यात्रा के दौरान भी विशेश्वर उन लोगों में शुमार थे, जिन्हें पीएम की आगवानी करने का मौका मिला जाता है.
कार्यक्रम के बाद इसे विशेश्वर के सियासी पैठ से जोड़ कर भी काफी थी

आभार :Pardesh18

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