Advertisement

Advertisement

यहाँ भी बहुत कुछ है।

यहाँ भी बहुत कुछ है।

यहाँ भी बहुत कुछ है।

यहाँ भी बहुत कुछ है।

यहाँ भी बहुत कुछ है।

Pages

Wednesday, February 17, 2016

दलितों और मुसलमानों को ही क्यों देशद्रोही बना देती है संघ

संघ द्वारा संचालित मोदी सरकार की पक्षपात कोई नई बात नहीं है लेकिन नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के अध्ययन से यह बात खुलकर सामने आयी है कि संघी सरकार केवल मुसलमानों और दलितों के खिलाफ कार्यवाही करती है और उनपर आसानी से देशद्रोह का आरोप लगा देती है लेकिन चरमपंथी सवर्ण हिंदूओ के मुकाबले में गीदड़ बन जाती है और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती है।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक़, मृत्युदंड पाने वालों में कुल 75 फ़ीसदी और चरमपंथ को लेकर दी गई फांसी में 93.5 फ़ीसदी सज़ा दलितों और मुस्लिमों को मिली है। ऐसे में पक्षपात का मुद्दा उभरता है।
मालेगांव धमाकों का उदाहरण देते हुए कुछ लोग यह आरोप लगाते हैं कि अगर चरमपंथी गतिविधियों में सवर्ण हिंदुओं के शामिल होने का मामला हो तो सरकार सख़्ती नहीं दिखाती है।
बेअंत सिंह के हत्यारों को फांसी देने की जल्दी नहीं है। राजीव गांधी के हत्यारों की सज़ा कम कर उसे उम्रक़ैद में तब्दील कर दिया गया है। इन लोगों को भी चरमपंथ का दोषी पाया गया था। लेकिन सबको समान क़ानून से कहां आंका जा रहा है?
इन सबमें मायाबेन कोडनानी को छोड़ ही दें, जिन्हें 95 गुजरातियों की हत्या के मामले में दोषी पाया गया था, लेकिन वे जेल में भी नहीं हैं।
तो क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि बीजेपी और आरएसएस मिलकर लोकतंत्र को कुचल रहे है और भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलना चाहते है। इसी कारण जो भी उनकी विचारधारा के अनुसार नहीं बोलता उसपर हमला शुरू कर दिया जाता है इस प्रकार अभिव्यक्ति की आजादी खतम होती जा रही है।

0 comments:

Post a Comment