चिंटू कुमारी |
चिंटू जब पढ़ाई के लिए दिल्ली आई थीं तब इसमें सीपीआई(एम-एल) ने काफी मदद की थी। बाद में उनका दाखिला जेएनयू में हुआ जहां वह एमफिल कर रही हैं। 20 साल की चिंटू 2014 में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन (आईसा) के टिकट पर छात्रसंघ का चुनाव लड़कर जनरल सेक्रटरी बनी थीं।
चिंटू के पैरंट्स आईसा के पैरंट ऑर्गनाइजेशन सीपीआई (एम-एल) के सदस्य हैं। बिहार में जब जातिवाती हिंसा का खूनी दौर चल रहा था और रणवीर सेना ने 1996 में जब बथानी टोला नरसंहार को अंजाम दिया था तब उनके पिता रामलखन ने छिपकर अपनी जान बचाई थी। मजदूरी में बढ़ोतरी की मांग को लेकर वह खेतिहर मजदूरों के आंदोलन का नेतृत्व कर चुके हैं जिसकी वजह से ऊपरी तबके के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा था।
चिंटू की मां सरोजिनी रोजी-रोटी के लिए चूड़ियां बेचने का काम करती हैं। वहीं उनसे छोटी दो बहनें सीपीआई (एम-एल) की मदद से ही दिल्ली में पढ़ाई कर रही हैं। उनके भाई संदीप आरा के सीपीआई(एम-एल) दफ्तर में ही रहते हैं और कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं।
जब सरोजिनी को जेएनयू की घटना के बारे में पता चला तो वह काफी परेशान हो गईं। अपनी बेटी को देशद्रोही करार दिए जाने से वह काफी दुखी हैं। उन्होंने कहा, 'हमने सिर्फ यही चाहा कि हमारे बच्चे पढ़-लिख जाएं ताकि वे देश की सेवा कर सकें। हमने यह कभी नहीं चाहा कि वे कमाकर हमें खिलाएं या फिर हमारे लिए घर बनवाएं।' सरोजिनी ने कहा कि उनका परिवार तहेदिल से लेफ्ट विचारधारा को मानता है, लेकिन वे देशद्रोही नहीं हैं।
सरोजिनी ने अपनी बेटी को देशद्रोही करार दिए जाने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। जब चिंटू के सरेंडर करने की बात पूछी गई तो उन्होंने सवाल खड़े किए और पूछा कि उसे सरेंडर क्यों करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'वह इसलिए सरेंडर करे ताकि भगवा ब्रिगेड से जुड़े काले कोट वाले लोग पुलिस के सामने उसकी पिटाई करें जैसा कि उसके दोस्त कन्हैया कुमार की हुई।' एनबीटी
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