डॉ खुर्शीद अहमद अंसारी की दो कवितायें ।
1-माँ
(आज फिर याद बहुत आई माँ)
तेरी दुआओं के साये,इस वहशत मे इक नूर से हैँ .
तेरे क़दमों मे जन्नत है, जो सबकी इक ख्वाहिश सी है
मैं क्या जानूँ जन्नत' दोज़ख सब कुछ तेरे नाम के बाद
तू जननी है, तू ही ममता ,तू दुनिया कि हर नैमत है
तेरे सदक़े यह जान मेरी , तेरे कदमोँ मे सब खुशियां
तू काश अगर जिन्दा होती मै फ़िर से तेरे कांधो पर
सर रख लेता और सो जाता !
मैं इक सदी से सोया कहां,
तुम फिर आतीं मै सो जाता
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2-ज़ीस्त
कुछ तो तुझको मनाने में गुज़री
और कुछ रूठ जाने में गुज़री
ज़िन्दगी तू बहुत कमीनी है
ज़िम्मेदारी ,निभाने में गुज़री
लम्हा ए इल्तिफ़ात की, तो न पूछ
जोड़ने और घटाने में गुज़री
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