जामिया नगर के ओखला बस स्टैंड से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई मोहम्मद वाकिफ और मोहम्मद महताब खान की हत्या कि सी बी आई से जाँच की माँग को लेकर कैनडील मार्च बटला हाउस होते हुए डा. ज़ाकिर हुसैन के मक़बरे पर सरवर इक़बाल खान , मोहम्मद मुस्लिम और मोहम्मद असलम कि क़ेयादत में खत्म हुआ । इस मौके पर सरवर इक़बाल खान ने कहा कि सरकार सी बी आई से जाँच कराए और मलजमीन को सज़ा दे सरवर ने आशंका ज़ाहीर कि के हो सकता है विशेष ताकत जो ए एम यु को बदनाम करने की साज़ीश कर सकती है ।सी पी आई के ओखला सचिव श्री मोहम्मद मुस्लिम ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी को जो लोग बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं उसे कामयाब नहीं होने दिया जाएगा । सरकार सीबीआई जांच करए। इस मौक़े पर मो इमरान, मो अयुब अंसारी ,मोहम्मद, मोहम्मद फारूक़ खान, शहंशाह खान,मोहम्मद आसीफ ख़ान,वकील जौहरी ने भी खेताब किया । मार्च को तंज़ीमें इसाफ ,एस डी पी आई, ए आई आई एम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और जामिया मिलाया के सैकड़ो छात्र मौजुद थे ।
Thursday, May 12, 2016
AMU में हुई मोहम्मद वाकिफ और मोहम्मद महताब खान की हत्या कि सी बी आई से जाँच की माँग को लेकर कैनडील मार्च
जामिया नगर के ओखला बस स्टैंड से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई मोहम्मद वाकिफ और मोहम्मद महताब खान की हत्या कि सी बी आई से जाँच की माँग को लेकर कैनडील मार्च बटला हाउस होते हुए डा. ज़ाकिर हुसैन के मक़बरे पर सरवर इक़बाल खान , मोहम्मद मुस्लिम और मोहम्मद असलम कि क़ेयादत में खत्म हुआ । इस मौके पर सरवर इक़बाल खान ने कहा कि सरकार सी बी आई से जाँच कराए और मलजमीन को सज़ा दे सरवर ने आशंका ज़ाहीर कि के हो सकता है विशेष ताकत जो ए एम यु को बदनाम करने की साज़ीश कर सकती है ।सी पी आई के ओखला सचिव श्री मोहम्मद मुस्लिम ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी को जो लोग बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं उसे कामयाब नहीं होने दिया जाएगा । सरकार सीबीआई जांच करए। इस मौक़े पर मो इमरान, मो अयुब अंसारी ,मोहम्मद, मोहम्मद फारूक़ खान, शहंशाह खान,मोहम्मद आसीफ ख़ान,वकील जौहरी ने भी खेताब किया । मार्च को तंज़ीमें इसाफ ,एस डी पी आई, ए आई आई एम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और जामिया मिलाया के सैकड़ो छात्र मौजुद थे ।
Saturday, March 19, 2016
सोशल मीडिया में वायरल हुई नाबालिग के साथ जेल अधीक्षक की आपत्तिजनक तसवीर
किशनगंज : स्थानीय मंडल कारा में तैनात जेल अधीक्षक कृपा शंकर पांडे की स्थानीय सुभाषपल्ली निवासी एक नाबालिग के संग आपत्तिजनक तसवीर व वीडियो सोशल नेटवर्किंग साइट में वायरल हो जाने के बाद सनसनी फैल गयी वहीं स्थानीय पुलिस ने भी मामले को संज्ञान में लिया है.
मंगलवार को एसपी राजीव रंजन के निर्देश के बाद एसडीपीओ कामिनी बाला मामले की जांच के लिए मंडल कारा जा पहुंची. जहां बंद कमरे में जेल अधीक्षक से पूछताछ की गयी़ इसके बाद एसडीपीओ ने बताया कि अब तक सिर्फ जेल अधीक्षक से ही पूछताछ की गयी है तथा नाबालिग से पूछताछ के बाद ही इस संबंध में कुछ कहा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि पूछताछ के क्रम में श्री पांडे ने अपने उपर लगे आरोपों को निराधार बताते हुए वीडियो में खुद की तसवीर को सही बताया, परंतु नाबालिग को अपनी पुत्री समान बताया है.
क्या कहते हैं जेलर
जेल अधीक्षक कृपा शंकर पांडे ने कहा कि मुझे बदनाम करने की साजिश रची जा रही है. उन्होंने कहा कि युवती के संग उनके संबंध बाप-बेटी के रिश्ते के समान हैं.
क्या कहती हैं एसडीपीओ
तसवीर व वीडियो के संबंध में एसडीपीओ कामिनी बाला ने कहा कि भारतीय संस्कार में किसी पिता द्वारा बेटी समान युवती के संग इतने अंतरंग संबंध कदापि नहीं हो सकते हैं
Thursday, March 17, 2016
नो शराब इन बिहार, पकड़े जाने पर नशा टुट जाए
बिहार कैबिनेट ने पूर्ण शराब बंदी और शराबखोरी को लेकर अपने वायदे के अनुरूप काम करना शुरू कर दिया है. आज कैबिनेट में सार्वजनिक स्थल पर शराब पीने वालों के लिये कड़ी सजा के साथ पांच लाख रुपये जुर्माने का फैसला लिया गया है. नये प्रावधान में अगले महीने यानी अप्रैल से सार्वजनिक जगहों पर शराब पीने या बेचने वालों को दस साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है. साथ ही एक लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक जुर्माना भी देना होगा. यह निर्णय बुधवार को कैबिनेट की बैठक में लिया गया. बताया गया है कि यह प्रावधान पुलिस पर भी लागू होगा. यदि कोई पुलिस किसी निर्दोष को शराब मामले में फंसाने में शामिल पाया गया तो उन्हें सख्त सजा का सामना करना पड़ेगा. पूर्व में इस तरह के प्रावधान नहीं थे.
सदन में लाया जायेगा विधेयक
जानकारी के मुताबिक यह विधेयक प्रावधान विधान मंडल के चालू सत्र में पारित कराया जायेगा. इसे राज्य सरकार एक अप्रैल से पूरे राज्य में लागू करेगी. बैठक में 28 एजेंडों का स्वीकृत किया गया. सूत्र ने बताया कि उच्च शिक्षा में प्रोन्नति और नियुक्ति के लिए गठित जस्टीस एनएम झा कमेटी के कार्यकाल को छह माह का विस्तार देने का निर्णय लिया गया है. चीनी मिलों को इथेनॉल बनाने की अनुमति दी गयी है वहीं राज्य में स्प्रीट बनाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. महिला पोलिटेकनिक कॉलेजों में महिला होस्टल के लिए राशि स्वीकृत किया गया है.
कई अधिकारी हुये बरखास्त
कैबिनेट की बैठक में कई डॉक्टर, बिप्रसे के अधिकारी और ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी को बरखास्त करने का निर्णय लिया गया है. बरखास्त होने वालों में डॉ ओम प्रकाश, डॉ जवाहर लाल प्रसाद, डॉ कलीमुद्दीन, और बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी और ग्रामीण विकास विभाग के ओएसडी मनोज कुमार शामिल हैं. सूत्र ने बताया कि बैठक में स्वास्थ्य विभाग ने 78 आयुर्वेदिक, 37 यूनानी सहत कुल 217 आयुष डॉक्टरों को प्रथम और द्वितीय एसीपी और द्वितीय एमएसएपी देने का निर्णय लिया गया है.
नगर निकायों में सफाई की समसया को दूर करने के लिए समूह ग के पद पर सेवानिवृत कर्मियों को संविदा के आधार पर नियुक्त करने की अनुमती दी गयी है. कहा गया है कि इससे नगर निकाय क्षेत्रों में सफाई की समस्या को दूर किया जायेगा. जिला परिषद और नगर निकायों में तैनात 20 हजार माध्यमिक शिक्षकों के वेतन भूगतान के लिए दो अरब रुपये स्वीकृत किया गया है. इन शिक्षकों के पिछले छह माह के बकाये वेतन का भुगतान होगा. 140 नगर निकायों को विभिन्न मदों में खर्च के लिए 434 करोड़, सामाजिक सहायता कार्यक्रम के लिए सात अरब और मुख्यमंत्री सामाजिक सुरक्षा योजना मद में चार सौ करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं
सदन में लाया जायेगा विधेयक
जानकारी के मुताबिक यह विधेयक प्रावधान विधान मंडल के चालू सत्र में पारित कराया जायेगा. इसे राज्य सरकार एक अप्रैल से पूरे राज्य में लागू करेगी. बैठक में 28 एजेंडों का स्वीकृत किया गया. सूत्र ने बताया कि उच्च शिक्षा में प्रोन्नति और नियुक्ति के लिए गठित जस्टीस एनएम झा कमेटी के कार्यकाल को छह माह का विस्तार देने का निर्णय लिया गया है. चीनी मिलों को इथेनॉल बनाने की अनुमति दी गयी है वहीं राज्य में स्प्रीट बनाना प्रतिबंधित कर दिया गया है. महिला पोलिटेकनिक कॉलेजों में महिला होस्टल के लिए राशि स्वीकृत किया गया है.
कई अधिकारी हुये बरखास्त
कैबिनेट की बैठक में कई डॉक्टर, बिप्रसे के अधिकारी और ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी को बरखास्त करने का निर्णय लिया गया है. बरखास्त होने वालों में डॉ ओम प्रकाश, डॉ जवाहर लाल प्रसाद, डॉ कलीमुद्दीन, और बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी और ग्रामीण विकास विभाग के ओएसडी मनोज कुमार शामिल हैं. सूत्र ने बताया कि बैठक में स्वास्थ्य विभाग ने 78 आयुर्वेदिक, 37 यूनानी सहत कुल 217 आयुष डॉक्टरों को प्रथम और द्वितीय एसीपी और द्वितीय एमएसएपी देने का निर्णय लिया गया है.
नगर निकायों में सफाई की समसया को दूर करने के लिए समूह ग के पद पर सेवानिवृत कर्मियों को संविदा के आधार पर नियुक्त करने की अनुमती दी गयी है. कहा गया है कि इससे नगर निकाय क्षेत्रों में सफाई की समस्या को दूर किया जायेगा. जिला परिषद और नगर निकायों में तैनात 20 हजार माध्यमिक शिक्षकों के वेतन भूगतान के लिए दो अरब रुपये स्वीकृत किया गया है. इन शिक्षकों के पिछले छह माह के बकाये वेतन का भुगतान होगा. 140 नगर निकायों को विभिन्न मदों में खर्च के लिए 434 करोड़, सामाजिक सहायता कार्यक्रम के लिए सात अरब और मुख्यमंत्री सामाजिक सुरक्षा योजना मद में चार सौ करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं
Friday, March 11, 2016
रोड चौड़ी करने को लेकर शाहीन बाग़ में धरना, विधायक का विरोध शुरू
आज जामिया नगर कि शाहीन बाग चौकि के नज़दीक ओखला विकास मंच के दुारा शाहीन बाग़ कि रोड चौड़ी को लेकर धरना दिया गया ।
जिसमें सरवर इक़बाल खान , आशु खान, परवेज़ आलम खान, परवेज़ मोहम्मद , अंजारूल हक़, अफज़ाल अंसारी, जावेद इक़बाल खान, तासीर अहमद ने मौजुदा लोगो़ को समबोधित किया ।
सरवर इक़बाल खान ने कहा कि मौजुदा MLA रोड को तंग कर 12 फिट चौड़ा पार्क बना कर ये अवाम को धोका है सरवर इक़बाल ने कहा कि मुझे सड़क भी चौड़ी चाहीए और पार्क भी उनहों ने गुज़ारीश कि के विधायक सड़क से सटी दुसरी ज़मिन में पार्क बनाए ।
समाजीक कार्यकर्ता आशु खान ने कहा कि सरकार रोड तो बना नहीं रही है पर रोड को तंग ज़रूर कर रही है।
आशु ख़ान ने कहा कि अगर रोड को तंग किया गया तो अंदोलन होगा ।
स्वराज संवाद के अफज़ाल अंसारी ने कहा कि विधायक डिकटेटर हो गए है मनमानी कर रहे हैं अवाम से राय ले कर करना चाहिए था ।
खोदाई खिदमतगार के यासिर अली ने कहा कि विधायक जी को मोहल्ला सभा कि मिटीग बुला कर ये फैसला करना चाहिए था कि पार्क बने या नहीं ।जनता के साथ विधायक जी छलवा नहीं करें ।
काँग्रेस नेता परवेज़ आलम खान ने कहा कि केजरीवाल सरकार और उन के विघायक मनमानी कर रहे हैं केजरीवाल ने वादा किया था कि महल्ला के विकास के लिए हर मोहल्ला सभा को चार करोड़ रू देंगे कहाँ गए चार करोड़ ?
समाजीक कार्यकर्ता परवेज़ मोहम्मद ने रोड़ को तंग कर सड़क को तंग करने से किया नुकसान होगा।
मंच का संचालन टी एम ज़िया उल ह़क ने किया ।
धरना समाप्त होने के बाद मार्च शाहिन बाग़ चौकी से शुरू हुआ और कालेंदी कुज़ रोड पर खतम हुआ
Monday, March 7, 2016
JNU का साच : षडय़ंत्र की परतें
राजेंद्र शर्मा
जेएनयू में छात्रों के एक ग्रुप के 9 फरवरी के जिस आयोजन के नाम पर, मोदी सरकार और संघ परिवार ने अपने सभी विरोधियों और सबसे बढ़कर वामपंथ को देशद्रोही दिखाने की जबर्दस्त मुहिम छेड़ी है, उस आयोजन को लेकर रहस्य गहराता जा रहा है। बेशक, इस क्रम में अफजल गुरु की फांसी की सजा के विरोध को जिस तरह देशद्रोह बनाने की कोशिश की गई है, उसे मंजूर नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार, किसी भी प्रकार के नारे लगाने भर को राजद्रोह नहीं माना जा सकता है। वास्तव में इस संबंध में तो देश का सर्वोच्च न्यायालय पहले ही स्पष्टï राय दे चुका है और बाकायदा हिंसा के लिए फौरी उकसावे की शर्त लगा चुका है। फिर भी, उक्त आयोजन को लेकर सरकार समेत संघ परिवार की ''देशद्रोह के नमूनेÓÓ की निर्मिति खुद गंभीर संदेहों के घेरे में है। इन संदेहों के दो-तीन तत्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
पहला, तथ्य जो खासतौर पर दिल्ली सरकार द्वारा कराई गई पूरे मामले की मजिस्ट्रेटी जांच से सामने आया है, यह है कि उक्त आयोजन के लिए दो टेलीविजन चैनलों के कैमरों को विशेष रूप से और निजी तौर पर बुलाया गया था। इनमें से एक चैनल को तो बाद में उक्त कार्यक्रम की रिकार्डिंग के साथ छेड़छाड़ कर के कन्हैया के मुंह से नारे लगवाने वाला फर्जी वीडियो बनाने के लिए, रंगे हाथों पकड़ा भी गया है। यह दूसरी बात है कि भाजपा सरकार के आशीर्वाद से इसके बावजूद, इस चैनल को कोई नोटिस तक नहीं मिला है, फिर दूसरों को वीडियो के साथ फर्जीवाड़ा न करने का सबक देने वाली कोई सजा दिए जाने का तो सवाल ही कहां उठता है। विश्वविद्यालय सिक्युरिटी के परिसर में प्रवेश के रिकार्ड के अनुसार, इन चैनलों को प्रस्तावित आयोजन से काफी पहले और जेएनयू के एबीवीपी नेताओं द्वारा बुलाया गया था।
इससे कम से कम एक बात तो निर्विवाद रूप से साबित हो ही जाती है। 9 फरवरी को जेएनयू में जो कुछ हुआ, स्वत:स्फूर्त नहीं था। उसके लिए कम से कम उन लोगों की तरफ से पूरी तैयारी थी, जिन्होंने बाद में इसे जेएनयू के खिलाफ हमले का हथियार बनाया। क्या टेलीविजन चैनल इस पूर्व-नियोजित टकराव को, संघ-एबीवीपी के पक्ष से दर्ज करने के लिए ही बुलाए गए थे? आखिरकार, 'देशभक्तों बनाम देशद्रोहियों के युद्घÓ के भोंडे रूपक के प्रचार के जरिए, इस रिकार्डिंग का जेएनयू के छात्र आंदोलन को बदनाम करने में तो उपयोग किया ही जा सकता था। पहले पुणे फिल्म तथा टेलीविजन इंस्टीट्यूट, फिर मद्रास आईआईटी पेरियार-आंबेडकर स्टडी सर्किल, फिर गैर-नैट छात्रवृत्ति बंद किए जाने के खिलाफ आक्यूपाई यूजीसी और अंतत: रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या, हरेक मामले में मोदी सरकार और उसकी शिक्षा मंत्री के कदमों के खिलाफ संघर्ष के अगले मोर्चे पर रहे जेएनयू के वामपंथी छात्र आंदोलन पर अंकुश लगाना जरूरी था।
लेकिन, लगता है कि खेल शायद इससे भी बड़ा था। एबीवीपी के बुलाए वफादार चैनलों की रिकार्डिंग के माध्यम से सत्तापक्ष तथा उसके द्वारा नियंत्रित शासन-प्रशासन के पास, 9 फरवरी को जो कुछ हुआ था, उसकी साक्ष्यों समेत पूरी जानकारी शुरु से ही थी, जिसमें आपत्तिजनक नारे लगाने वालों से संबंधित जानकारी भी शामिल थी। इसके बावजूद, पहले एबीवीपी व भाजपा सांसद की शिकायत के माध्यम से सिर्फ आपत्तिजनक नारों को उछाला गया और उनके लिए छात्रसंघ के अध्यक्ष व महासचिव समेत, वामपंथी छात्र नेताओं के मुंह में ये नारे रखने की कोशिश की गई। इनका झूठ अब बाकायदा पकड़ा जा चुका है। लेकिन, कन्हैया की गिरफ्तारी से लेकर अब जमानत पर रिहाई तक, पिछले इतने घटनापूर्ण करीब चार हफ्तों में पुलिस, न सिर्फ उक्त नकाबपोशों को पकड़ नहीं पाई है बल्कि उनकी किसी तरह से पहचान तक नहीं कर पाई है। वास्तव में पुलिस इस सच्चाई को देखकर भी नहीं देखना चाहती है कि कोई बाहरी नकाबपोश थे, जिन्होंने उक्त आपत्तिजनक नारे लगाए थे।
इसका सबसे उदार अर्थ तो यही हो सकता है कि सरकार की और इसलिए उसकी पुलिस की भी दिलचस्पी, वास्तव में न तो उक्त राष्टï्रविरोधी नारों में थी और न उक्त नारे लगाने वालों को देश के कानून के तहत बनने वाली सजा दिलाने में। उनकी दिलचस्पी तो जेएनयू छात्र आंदोलन, जेएनयू और उसके बहाने से विपक्ष तथा विशेष रूप से वामपंथ को देशविरोधी प्रचारित करने में थी और यह उद्देश्य पूरा हो चुका है। लेकिन, इससे एक और गंभीर आशंका भी पैदा होती है। कहीं मौके पर संघ के वफादार टेलीविजन कैमरों की ही तरह, देश तोडऩे के नारे लगाने वाले नकाबपोशों की उपस्थिति भी प्रायोजित और इसलिए एक बड़े षडय़ंत्र का हिस्सा तो नहीं थी? बेशक, नवउदारवाद के इस जमाने में बार-बार कहकर 'षडय़ंत्र सिद्घांतÓ को इतना बदनाम कर दिया गया है कि ऐसे षडय़ंत्र की ओर इशारा करते हुए भी हिचक होती है। लेकिन, सच्चाई यह है कि दुनिया भर में सत्ताधारी ताकतेें, एजेंट प्रोवेकेटियरों का ऐसा उपयोग करती आई हैं और आज भी कर रही हैं।
वास्तव में इसी बीच सामने आई इशरत जहां प्रकरण को नया रंग देने की सारी कोशिशों के बावजूद, पूर्व-गृह सचिव जीके पिल्लै ने चिदंबरम तथा कांग्रेस को मुश्किल में डालने की कोशिश करते हुए भी, इस पूरे प्रकरण के खुफिया ब्यूरो का एक ''कंट्रोल्ड आपरेशनÓÓ होने की बात मानी है। सुरक्षातंत्र की भाषा के जानकारों के अनुसार, इस मामले में कंट्रोल्ड ऑपरेशन का संक्षिप्त अर्थ है—बहकाकर बुलाना और खत्म कर देना! हालांकि यह सोचकर दहशत होती है, फिर भी सच यही है कि जो खुफिया एजेंसियां एक कॉलेज छात्रा समेत चार लोगों को, उनकी पृष्ठïभूमि कुछ भी हो, फंसाकर षडय़ंत्रपूर्वक मौत के घाट उतार सकती हैं और इससे सत्ताधारी नेताओं की हत्या के षडय़ंत्र को विफल करना प्रचारित कर सकती हैं, क्या एक कार्यक्रम में अपने 'मनचाहेÓ नारे लगवाने के लिए तीन नकाबपोश खड़े नहीं कर सकती हैं? क्या पुलिस इसीलिए उन्हें बचा रही है? मुद्दा नारों के देशद्रोहात्मक या राजद्रोहात्मक होने न होने का नहीं है। मुद्दा इस मुद्दे को इतना तूल देने के बावजूद, ये नारे लगाने वालों की सही पहचान करने से शासनतंत्र के कतराने का है। जब तक उक्त नकाबपोशों की पक्की पहचान नहीं की जाती है और इसी के हिस्से के तौर पर छात्रसंघ के पदाधिकारियों समेत वामपंथी छात्र नेताओं को उक्त नारों से अलग नहीं किया जाता है, तब तक यह संदेह बना ही रहेगा और समय गुजरने के साथ और गहरा होता जाएगा कि कहीं यह भी छात्र आंंदोलन तथा आम तौर पर विपक्ष के खिलाफ खुफिया ब्यूरो-संघ परिवार का मिला-जुला ''कंट्रोल्ड ऑपरेशनÓÓ तो नहीं था! यह ऑपरेशन उनके लिए अंतत: फायदे का सौदा होगा या घाटे का, यह एक अलग विषय है
देशबंधु
देशबंधु
Saturday, March 5, 2016
कन्हैया तो एक झाँकी है .......
सतीश मिश्रा
कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी ‘अंकुर’। श्याम बेनेगल की इस फिल्म का आखिरी 5 सेकंड का दृश्य ही पूरी फिल्म की जान था। इसमें पूरा गांव जमींदार के दमन और शोषण के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल पाता, मानों हर जुल्म सहना उनकी नियति बन गई हो लेकिन आखिरी सीन में भुक्तभोगी दंपती (अनंत नाग व शबाना आजमी) का नन्हा सा बेटा संदेश देता है कि भले ही उसके मां-पिता ने सloबकुछ सह लिया हो लेकिन अब नई पीढ़ी यह बर्दाश्त नहीं करेगी और पहला पत्थर उस जमींदार के अभेद्य दुर्ग पर फेंककर उसकी खिड़की का कांच तोड़ देता है जिसकी ओर देखने की किसी में हिम्मत नहीं थी। इस ऐक्ट में इतना कुछ छिपा था जो शायद वह ढाई घंटे की फिल्म नहीं बोल पाई।
दूसरी आजादी का नारा देनेवाले जयप्रकाश नारायण रहे हों या संपूर्ण क्रांति के पक्षधर राममनोहर लोहिया या फिर सबसे ताजातरीन आंदोलक अन्ना हजारे, हर क्रान्ति का पेट्रोल युवाओं की धमनियों से ही आया है। मेक इन इंडिया के तहत सरकार ने स्टार्ट-अप योजना पेश की थी लेकिन कन्हैया ने तो उसे कुछ अलग ही तरीके से अपनाकर सर जी, का पूरा आइडिया ही खराब कर दिया। एक ही झटके से विडियो-ऑडियो में कट-पेस्ट करनेवालों को पेचिश लग गई। 65% आबादी 35 वर्ष का फॉर्म्युला गिना-गिनाकर सत्ता पाने के बाद क्या उस 35 साल वालों को उसी अनुपात में सत्ता का अधिकार दिया गया? आज जरूरत है कि युवाओं की इस उपस्थिति का एहसास उन्हें फैसला लेने की शक्ति देकर किया जाए।
यह शाश्वत सत्य है कि षड़यंत्रों से युवकों की आवाज कभी दबाई नहीं जा सकती या किसी वर्ग की आवाज दबाकर, उनका माखौल उड़ाकर, तिरस्कार कर और बोलने की आज़ादी की जब कोशिश होगी तब वे उतने ही मुखर बनेंगे। देश इवेंट मैनेजमेंट के सहारे नहीं चलता। वह चलता है भूख, बेकारी, भ्रष्टाचार, समानता और महंगाई को मैनेज करने से। इन मोर्चों पर असफल रहने पर ऐसे ही अरविंदों, राहुलों और कन्हैयों की भरमार होती रहेगी।
कुमार विश्वास की कन्हैया पर बिल्कुल सटीक प्रतिक्रिया थी कि यह छोटा रिचार्ज तो पूरे नेटवर्क को उड़ा देने की क्षमता रखता है। कन्हैया ने सही याद दिलाया कि सीमा पर मारे जानेवाले सैनिक का कभी कोई भाई-भतीजा या रिश्तेदार क्यों राजनीतिज्ञ, मंत्री या बड़े अफसर नहीं निकलता? हर बार उन सैनिकों की शहादत पर उनका ताबूत गांवों-कस्बों में किसान या मध्यवर्ग ही क्यों पहुंचता है? उनकी शहादत पर घड़ियाली आंसू बहानेवाले क्या जाने उस दर्द को?
अभी कुछ महीनों पहले तक तो भक्त यही मान रहे थे कि कांग्रेस की हताशाभरी हार के बाद नेतृत्व पर अगर कोई उंगली उठा सकता है तो वह केवल अरविंद केजरीवाल हैं। लेकिन तब तक शानदार विनिंग कॉम्बिनेशन के साथ नीतीश कुमार आ धमके। अभी यह जोड़ी बनी थी कि राहुल के नए तेवरों ने ध्यान खींचा और तब तक रोहित वेमुला प्रकरण से दुखी पूरे युवा वर्ग से पंगा ले लिया गया कन्हैया को गिरफ्तार करके। यह एक की गिरफ्तारी नहीं थी बल्कि उसी 35 की आयुवाले 65% वर्ग से ले ली गई नाराजगी थी।
तमिलनाडु में लिट्टे से सहानुभूति रखनेवाली जयललिता, पंजाब में खालिस्तान आंदोलन को पनपने दे रहे अकाली दल, कश्मीर में PDP, असम में बोडोलैंड सहित देश में जितने अलगाववादी संगठन है उन सब से सत्ता की खातिर हाथ मिलाना ही क्या राष्ट्रप्रेम है? हीनभावना किसमें है यह देश को बताने की जरूरत है?
राहुल के नेतृत्व क्षमता पर उठे प्रश्न के बदले वास्तव में तो उनकी दाद तो देनी चाहिए कि उन्होंने सत्ता में रहते हुए विरोध व्यक्त करने के लिए प्रधानमंत्री के अध्यादेश को फाड़ने की हिम्मत की। आज मार्गदर्शक मंडल चिठ्ठी लिखने के अलावा कुछ कर सकता है? कन्हैया की बात में दम है कि लोगों को हीनभावना पर चर्चा महत्वपूर्ण लगती है लेकिन काला धन वापसी, JNU कांड, रोहित वेमुल्ला की आत्महत्या, हरियाणा के हिंसक जाट आंदोलन, पठानकोट हमला, EPF में टैक्स की बात मन में क्यों नहीं आती?
चलते-चलाते
राष्ट्रप्रेमी चिल्लाने से कोई राष्ट्रप्रेमी नहीं हो सकता। कन्हैया में देशद्रोही तलाशनेवालों सचमुच में राष्ट्रविरोधी पौधा देखना है तो कोई कश्मीर जाकर देखे जहां रोज सैकड़ों युवक मिलेंगे जो खुलेआम भारत के टुकड़े करने का आह्वान करते हैं और तिरंगे को रौंदते/जलाते हैं। सबसे बड़ी विडंबना है कि यह सब उसी कश्मीर में हो रहा है जहां बीजेपी की सरकार है
#नवभारत टाइम्स
#नवभारत टाइम्स
Friday, March 4, 2016
मनोज कुमार सम्मानित होंगे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
भारतीय सिनेमा के विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए सरकार द्वारा दिये जाने वाले इस पुरस्कार के तहत एक स्वर्ण कमल, 10 लाख रुपये नकद और एक शॉल प्रदान किया जाता है। मनोज कुमार को 47वें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने उनसे फोन पर बात कर उन्हें बधाई दी। अपने प्रशंसकों को एक से बढ़कर एक फिल्म देने वाले मनोज कुमार ने बतौर अभिनेता और निर्देशक पहले भी कई पुरस्कार जीते हैं। उनकी फिल्में ‘हरियाली और रास्ता’, ‘वह कौन थी’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘दो बदन’, ‘उपकार’, ‘पत्थर के सनम’, ‘नील कमल’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ एवं ‘क्रांति’ ने कामयाबी के तमाम झंडे गाड़े। इन फिल्मों में उन्होंने अविस्मरणीय अभिनय किया है। वह देशभक्ति पर आधारित फिल्मों में अभिनय एवं उनके निर्देशन के लिए जाने जाते हैं।
अविभाजित भारत के एब्बोट्टाबाद में जुलाई 1937 को जन्मे ‘भारत कुमार’ का परिवार 1947 में दिल्ली आ गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखने का फैसला लिया। वर्ष 1957 में फिल्म ‘फैशन’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले मनोज कुमार 1960 में ‘कांच की गुड़िया’ में प्रमुख भूमिका में नजर आए
अविभाजित भारत के एब्बोट्टाबाद में जुलाई 1937 को जन्मे ‘भारत कुमार’ का परिवार 1947 में दिल्ली आ गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखने का फैसला लिया। वर्ष 1957 में फिल्म ‘फैशन’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले मनोज कुमार 1960 में ‘कांच की गुड़िया’ में प्रमुख भूमिका में नजर आए